Shiv chaisa - An Overview
Shiv chaisa - An Overview
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वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
अर्थ: हे प्रभू आपने तुरंत तरकासुर को मारने के लिए षडानन (भगवान शिव व पार्वती के पुत्र कार्तिकेय) को भेजा। आपने ही जलंधर (श्रीमद्देवी भागवत् पुराण के अनुसार भगवान शिव के तेज से ही जलंधर पैदा हुआ था) नामक असुर का संहार किया। आपके कल्याणकारी यश को पूरा संसार जानता है।
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अर्थ: हे शिव शंकर भोलेनाथ more info आपने ही त्रिपुरासुर (तरकासुर के तीन पुत्रों ने ब्रह्मा की भक्ति कर उनसे तीन अभेद्य पुर मांगे जिस कारण उन्हें त्रिपुरासुर कहा गया। शर्त के अनुसार भगवान शिव ने अभिजित नक्षत्र में असंभव रथ पर सवार होकर असंभव बाण चलाकर उनका संहार किया था) के साथ युद्ध कर उनका संहार किया व सब पर अपनी कृपा की। हे भगवन भागीरथ के तप से प्रसन्न हो कर उनके पूर्वजों की Shiv chaisa आत्मा को शांति दिलाने की उनकी प्रतिज्ञा को आपने पूरा किया।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा
संकट से मोहि आन उबारो ॥ मात-पिता भ्राता सब होई ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥